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अधिग्रहणः-समुद्रवर्ती तथा प्रणालियां

अधिग्रहण विंग (समुद्रवर्ती तथा प्रणालियां)

रक्षा उपस्कर अधिग्रहण की प्रक्रिया पूंजीगत तथा राजस्व अधिप्राप्ति प्रक्रिया के तहत की जाती है । रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया, समय-समय पर यथासंशोधित, दिशानिर्देश तथा पूंजीगत अधिप्राप्ति की विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करता है । रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया(डीपीपी)-2011 में रक्षा मंत्रालय, रक्षा सेवाओं तथा भारतीय तटरक्षक द्वारा किए गए देशी स्रोतों तथा बाहरी दोनों से सभी पूंजीगत अधिग्रहण (चिकित्सा उपस्कर को छोड़कर) शामिल है । अधिग्रहण विंग (समुद्रवर्ती तथा प्रणालियां) महानिदेशक अधिग्रहण के अन्तर्गत कार्य करता है जिसके अध्यक्ष संयुक्त सचिव और अधिग्रहण प्रबंधक (एमएस) होते हैं जो नौसेना तथा तटरक्षक और त्रि-सेवाओं से संबंधित प्रणालियों के लिए जिम्मेदार है । संयुक्त सचिव तथा एएम(एमएस) वाणिज्यिक कोट प्राप्त करते हैं, वाणिज्यिक बातचीत समिति की अध्यक्षता करते हैं, प्रयोक्ताओं/उत्पादन अभिकरण/डीआरडीओ से तर्कसंगत कीमत अनुमान प्राप्त करते हैं,जैसे आवश्यक हो, सक्षम प्राधिकारी से सीएनसीसीएन की सिफारिशों की प्रक्रिया करते हैं तथा अनुमोदन प्राप्त करते हैं और अपेक्षित अनुमोदन प्राप्त होने के उपरान्त विक्रेताओं की संविदा पर हस्ताक्षर करते हैं । उपर्युक्त पूंजीगत अधिग्रहण के साथ-साथ संयुक्त सचिव एवं एएम (एमएस) के नेमी कार्य जैसे लेखापरीक्षा, संसदीय प्रश्न, स्थायी समिति आदि भी निपटाए जाते हैं । दो निदेशक/उपसचिव और एक योजना अधिकारी(प्रणालियां) भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक तथा तीनों सेवाओं की संक्रियात्मक अपेक्षाओं के अनुसार उपर्युक्त पूंजीगत अधिप्राप्ति मामलों की प्रक्रिया में संयुक्त सचिव तथा ए एम( एमएस) की सहायता करते हैं ।